गलवार को कांग्रेस ने एक तरह से 2019
के आम चुनावों के लिए अपने प्रचार अभियान का आग़ाज़ कर दिया. पार्टी ने
महात्मा गांधी के दिखाए रास्ते और दर्शन पर चलने की प्रतिबद्धता दोहराई,
साथ ही बीजेपी-आरएसएस के साथ लड़ाई को दो परस्पर विरोधी विचारों का युद्ध
क़रार दिया.
इसे समावेशी और निष्पक्ष भारत बनाम घमंड और नफ़रत भरे
भारत का संघर्ष बताते हुए कांग्रेस ने विभाजनकारी और पूर्वाग्रह भरी
ताक़तों और मोदी सरकार की नफ़रत और प्रतिशोध वाली राजनीति के ख़िलाफ़ नये
'स्वतंत्रता आंदोलन' छेड़ने की ज़रूरत बताई.
अहम फ़ैसले लेने वाली
कांग्रेस की सर्वोच्च समिति की बैठक का आयोजन स्वतंत्र भारत में पहली बार
सेवाग्राम में किया गया ताकि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उनके
विचारों का खुलकर समर्थन किया जाए. कांग्रेस ने दो घंटों से भी कम समय तक
चली इस बैठक को 'ऐतिहासिक' क़रार दिया.
लेकिन पार्टी ने आम जनता से
फिर से नाता जोड़ने, भारत के लिए नया विज़न तैयार करने, बीते कल को पीछे
छोड़कर आगे बढ़ने और मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ गठबंधन बनाने के लिए संभावित राजनीतिक सहयोगियों के साथ क़रीबी बढ़ाने का ऐतिहासिक मौक़ा गंवा दिया.
कांग्रेस
ने अपने बीते गौरव के बिखरे टुकड़ों को उस स्थान से बटोरने का अवसर भी
गंवा दिया, जहां महात्मा गांधी ने कई साल राष्ट्रीय संघर्ष के नेतृत्व और
अपने रचनात्मक कार्यों की आधारशिला रखने में बिताए थे.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने दो नए प्रस्ताव पारित किए. पहला- महात्मा
गांधी की विरासत को याद करना और दूसरा- परेशान किसानों के साथ कंधे से कंधा
मिलाकर खड़ा होना. यह प्रस्ताव किसान क्रांति मार्च के तहत दिल्ली की ओर
कूच कर रहे किसानों पर हुए लाठीचार्ज को ध्यान में रखते हुए पारित किया
गया.
लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक एक ऐसा कार्यक्रम साबित हुई जिससे कोई ठोस संदेश नहीं निकला.
ध्यान
रहे, कांग्रेस वर्किंग कमेटी 2019 के आम चुनावों से पहले चार राज्यों में
होने जा रहे काफ़ी अहम विधानसभा चुनावों से पहले हाल-फ़िलहाल दोबारा बैठक नहीं करेगी.
पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं कि किसानों और बेरोज़गारों
से किए गए वादों व गठबंधन बनाने के सवालों को लेकर दो अलग कमेटियां बनी हुई
हैं मगर मसलों को मंगलवार को हुई बैठक में पारित दोनों प्रस्तावों के आधार
पर ही हल किया जाएगा.
इसका मतलब यह हुआ कि हमें यह जानने के लिए अभी
इंतज़ार करना होगा कि किसानों के संकट और बेरोज़गारी के सवाल से निपटने के
लिए कांग्रेस क्या करेगी.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी एक और अहम सवाल का जवाब देने में नाकाम रही. एक आम आदमी या महिला क्यों उनकी पार्टी का फिर से समर्थन करे? पार्टी के
सिस्टम में आम आदमी की जगह कहां है?
राहुल गांधी के चिंतन और लोगों
से नाता जोड़ने की कोशिशों के बावजूद उनका संगठनात्मक तरकश या तो ख़ाली है
या फिर ऐसे लोगों से भरा है जो उनके दिल्ली दरबार से ताल्लुक रखते हैं.
तीन
दशकों से कांग्रेस ने ऐसा कोई जन आंदोलन नहीं चलाया है जो कोई विलक्षण
सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाया हो. इस कारण पैदा हुए जन आंदोलनों के
शून्य और विपक्षी पार्टी के अभाव को भरने में कांग्रेस नाकाम रही है.
ऐसे में नए सामाजिक राजनीतिक जोड़-तोड़ और आए दिन देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे आंदोलन इस निर्वात में फल फूल रहे हैं.
बैठक
के बाद पत्रकारों से बात करते हुए पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस,
महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत पर छोटे-बड़े आंदोलन शुरू करने का
इरादा रखती है.
कांग्रेस ने एक पदयात्रा भी निकाली जो बाद में एक
रैली में तब्दील हो गई. इसमें राहुल गांधी ने 2019 के लिए प्रचार अभियान का आगाज़ किया और लोगों से यह कहते हुए एक बार फिर कांग्रेस में विश्वास
जताने के लिए कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार सभी मोर्चों पर विफल साबित हुई है.
पार्टी
का इरादा तो सही था मगर कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने संगठनात्मक ढांचे, दूरदृष्टि, न्यू इंडिया की संकल्पना और जनता से फिर से नाता जोड़ने जैसी
चुनौतियों पर कुछ नहीं किया.
बात करना अलग चीज़ है और सही मायनों में बापू का अनुसरण करना अलग बात है.
ऐसा
लंबे समय बाद पहली बार हुआ था जब कांग्रेस के नेता सेवाग्राम आश्रम आए थे. सोचिए, ये वही जगह थी जहां से गांधी की कांग्रेस ने जुलाई 1942 में 'भारत
छोड़ो आंदोलन' शुरू किया था.
घड़ी की सूइयों को पीछे ले जाकर मार्च 1948 में चलते हैं.
11
से 15 मार्च 1948 तक महात्मा गांधी के 150 पक्के समर्थकों को वर्धा के पास
सेवाग्राम के उसी महादेव स्मारक भवन में पांच दिनों तक बंद रखा गया था,
जहां मंगलवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई.
महादेव स्मारक भवन को महात्मा गांधी की ऐसी धरोहर के तौर देखा जाता है, जहां उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक चिंतन किया था. से 1942 से 1944 के बीच बापू के क़रीबी सहयोगी और साथी महादेवभाई देसाई
को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था. महादेवभाई देसाई की बड़ी इज्जत
थी. उनकी मृत्यु अगस्त 1942 में हुई थी. उस समय बापू भारत छोड़ो आंदोलन को
लेकर जेल में थे. 1944 में जेल से बाहर निकलने के बाद इसी हॉल में उन्होंने
पहली बैठक को संबोधित किया था.
यहीं पर मार्च 1948 में हुए मंथन को 'गांधी इज़ गोन, हू विल गाइड अस' नाम की क़िताब में समेटा गया है.
चर्चा
में जवाहरलाल नेहरू, आचार्य विनोबा भावे, जे.सी. कुमारप्पा, ठाकुर बप्पा, कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, राजेंद्र प्रसाद और
अन्य शामिल थे.
बापू की हत्या हो गई थी और देश अभी शोक में डूबा हुआ
था. गांधी के क़रीबी सहयोगी, उनके साथी, शिष्य और सहयात्री ख़ुद को अंधेरे
में डूबा महसूस कर रहे थे.
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